रत्नैर्महार्हैस्तुतुषुर्न देवा न भेजिरे भीमविषेण भीतिम् ।

रत्नैर्महार्हैस्तुतुषुर्न देवा
न भेजिरे भीमविषेण भीतिम् ।
सुधां विना न प्रययुर्विरामम्
न निश्चितार्थाद्विरमन्ति धीराः॥८१॥

नीतिशतकम्

रत्न gem, jewel तृतीयाबहुवचनान्त:(न)
→ रत्नै:

महार्ह precious, valuable तृतीयाबहुवचनान्त:(न)
→ महार्है:

तुष् to be satisfied प्रथम पुरुष परोक्षभूतकालवाचक बहुवचनम्
→ तुतुषुः

न not अव्ययम्

देव god प्रथमाबहुवनान्त:(पु)
→ देवा:

न not अव्ययम्

भज् to experience प्रथम पुरुष परोक्षभूतकालवाचक बहुवचनम्
→ भेजिरे

भीमविष frightening poison तृतीयैकवचनान्त:(न)
→ भीमविषेण

भीति fear, dread द्वितीयैकवचनान्त:(स्त्री)
→ भीतिम्

सुधा nectar द्वितीयैकवचनान्त:(स्त्री)
→ सुधाम्

विना without अव्ययम्

न not अव्ययम्

प्र-या to go to, to undertake प्रथम पुरुष परोक्षभूतकालवाचक बहुवचनम्
→ प्रययुः

विराम halt, rest द्वितीयैकवचनान्त:(पु)
→ विरामम्

न not अव्ययम्

निश्चितार्थ predetermined goal, definite objective पञ्चम्येकवचनान्तः(पु)
→ निश्चितार्थात् 

विरम् to halt, to rest प्रथम पुरुष वर्तमानकालवाचक बहुवचनान्त:
→ विरमन्ति

धीर brave, persistent, patient प्रथमाबहुवचनान्त:(पु)
→ धीराः 

(समुद्रमंथनाच्या वेळी) मिळालेल्या बहुमोल रत्नांनीही देवांचे समाधान झाले नाही, भयंकर विष मिळाल्यावरही ते भयभीत झाले नाहीत. जोपर्यंत त्यांचे  अमृतप्राप्तीचे निर्धारित लक्ष्य साध्य झाले नाही, त्यांनी आपले अथक प्रयत्न चालुच ठेवले. निश्चयी व्यक्ती लक्ष्यप्राप्तीपर्यंत आपले अथक प्रयास थांबवत नाहीत.

(When they were churning the ocean), Gods were not satisfied by all the precious jewels they received, nor were they frightened by the deadly poison. They did not rest until they got the nectar. Because the determined never halt until they achieve their goals.

(समुद्र मंथन के समय) अति मूल्यवान रत्नों के ढेर मिलने पर भी देवगण संतुष्ट न हुए अथवा भयंकर विष निकलने पर भी वे भयभीत नहीं हो गये। जब तक उन के अमृत प्राप्ती का लक्ष्य साध्य नहीं होता, उन्होंने उन के अथक परिश्रम जारी रखें। इसी तरह, धीर व्यक्ति लक्ष्य के प्राप्ती तक उन के अथक परिश्रम जारी रखते हैं।

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